तुलसी विवाह का महत्व सनातन धर्म में अत्यधिक होता है। यह विवाह दांपत्य जीवन में सुख और परिवार में सुख-शांति लाने के लिए किया जाता है। खासतौर पर उन परिवारों में जहां शादी योग्य सदस्य होते हैं, वहां तुलसी विवाह करवाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
तुलसी के पौधे को वृंदा का रूप माना गया है और हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर इसका विवाह भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम से करवाया जाता है। इस पूजा के दौरान तुलसी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और प्रदोष काल में विधिपूर्वक पूजा होती है। धार्मिक मान्यता है कि इससे परिवार में सुख-शांति और दांपत्य जीवन में खुशियां आती हैं।
2024 में तुलसी विवाह 12 नवंबर को मनाया जाएगा। द्वादशी तिथि 12 नवंबर को शाम 4:04 बजे से शुरू होकर 13 नवंबर को दोपहर 1:01 बजे समाप्त होगी। चूंकि प्रदोष काल 12 नवंबर को पड़ रहा है, इसलिए इसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाएगा। मुहूर्त शाम 5:29 से रात 7:53 तक रहेगा।
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तुलसी विवाह के अनुष्ठान में सबसे पहले केले के पत्तों और गन्ने से मंडप सजाया जाता है। पूजा स्थल को सुंदर रंगोली से सजाया जाता है। मां तुलसी को सुहाग की सामग्री जैसे बिछुए, सिंदूर, बिंदी आदि चढ़ाए जाते हैं, जिससे वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इसके अलावा, तुलसी पूजा में गन्ना, अनार, केला, सिंघाड़ा, मूली आदि फल अर्पित किए जाते हैं और घी के 11 दीपक प्रज्वलित किए जाते हैं।
इस साल तुलसी विवाह पर अद्भुत संयोग बन रहे हैं। 12 नवंबर की सुबह 7:52 से सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा, जो अगले दिन सुबह 5:40 बजे तक प्रभावी होगा। इसके अलावा रवि योग भी रहेगा, जो विवाह जैसे मांगलिक कार्यों के लिए उत्तम माना जाता है। इस दिन हर्षण योग और वज्र योग का भी संयोग बनेगा, जिससे यह दिन और भी खास बन जाएगा।
पूरे रीति-रिवाज से तुलसी और शालिग्राम का विवाह संपन्न होता है, जिसमें तुलसी के पत्तों का विशेष महत्व होता है।
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