कम से कम इतना बोनस तो मिलना ही चाहिए, यह सरकारी नियम है।

By Aditya
October 13, 2025

दशहरा और दिवाली का त्यौहार कई लोगों के लिए आने वाले बोनस का उत्साह लेकर आता है। क्या आपने कभी इसके कानूनी आधार के बारे में सोचा है? ये भुगतान बोनस भुगतान अधिनियम के अंतर्गत आते हैं।

दिवाली पर प्राइवेट और सरकारी दफ़्तरों में कर्मचारियों को बोनस मिलता है।

त्योहार के समय लोगों के खर्चे काफी बढ़ जाते हैं, ऐसे में सरकार का मकसद होता है कर्मचारियों के फेस्टिव सीजन में होने वाले बोझ को कम कर सकें.

जानकारी के अनुसार, भारत में दिवाली बोनस की परंपरा ब्रिटिश शासन के दौरान 1940 में शुरू हुई थी। पहला दिवाली बोनस 1940 में घोषित किया गया था।

साल 1965 में पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट पारित किया गया था. बाद में, बोनस कानूनी अधिकार बन गया और भारत में आज भी यह प्रथा जारी है.

पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट के तहत, कंपनियों को कर्मचारी की सैलरी का कम से कम 8.33 प्रतिशत हिस्सा बोनस के रूप में उसे देना जरूरी है.

पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट, 1965 (बोनस भुगतान अधिनियम) भारत का एक महत्वपूर्ण श्रम कानून है जो कर्मचारियों को संस्थान के मुनाफे में हिस्सेदारी सुनिश्चित करता है.

इसका मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को प्रेरित करना और उनकी कड़ी मेहनत का पुरस्कार देना है. यह कानून प्रॉफिट और प्रोडक्टिविटी के आधार पर बोनस देने के लिए नियम निर्धारित करता है.

इस अधिनियम के मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को कंपनी का प्रॉफिट में हिस्सा देना है. इसके साथ ही बेहतर प्रदर्शन के लिए कर्मचारियों को प्रेरित करना और उनमें अपनेपन की भावना पैदा करना है.

पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट, 1965 उन सभी फैक्ट्रियों और प्रतिष्ठानों पर लागू होता है, जहां 20 या उससे अधिक व्यक्ति काम कर रहे हैं.

एक बार जब कोई कंपनी इस अधिनियम के दायरे में आ जाती है, तो बाद में भले ही कर्मचारियों की संख्या 20 से कम हो जाए, उस कंपनी को अपने कर्मचारियों को बोनस देना ही होगा.

कर्मचारियों का बोनस उनके वेतन और कंपनी के मुनाफे पर निर्भर करता है। लाभ या हानि की परवाह किए बिना, नियोक्ता को कर्मचारी के वार्षिक वेतन या मजदूरी का न्यूनतम 8.33% बोनस देना अनिवार्य है।

बोनस का भुगतान किसी भी वित्तीय वर्ष की समाप्ति के 8 महीने के भीतर करना अनिवार्य है। भारत में, कंपनियाँ अक्सर यह भुगतान दीवाली के त्योहार के आस-पास करती हैं।

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